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लेखनी कहानी -09-Mar-2022 प्रतिलिपि हवेली में होली का हुरंगा

"हरफनमौला जी" हवेली में बैठे सारे लोग तो ऐंवैंयी हैं" ।  पुष्प लता मैम थोड़ी गुस्से में थीं । "क्या हुआ मैम" ? हमने कारण जानने के लिए उनके मुंह के पास अपने कान धर दिये । 
"कल आपने कहा था ना कि सबको कमेंट में कम से कम एक गाना लिखना है । लिखा किसी ने ? आप यहां बेकार में ही इतनी मेहनत कर रहे हैं । कोई सुनता भी है क्या आपकी यहां पर " ? 
हमें काटो तो खून नहीं । पुष्प लता मैम ने "कटु सत्य" बता दिया था । अब तक इतने धारावाहिकों में हमने सब लोगों को कुछ न कुछ एक्टिविटी करने को कहा था । कितने लोगों ने की ? गिनती के लोगों ने ही ना ।  फिर भी हम बड़े जोश खरोश से लगे रहे इसमें , कुछ भी नहीं कहा । मगर पुष्प लता मैम ने जब इस ओर हमारा ध्यान दिलाया तब हमें भी महसूस हुआ । मगर किस से क्या कह सकते हैं । हम कोई बॉस तो हैं नहीं जो किसी की ACR खराब कर दें । या फिर किसी की पत्नी भी नहीं हैं कि उन्हें रोटी के लिए तरसा दें । हमारी औकात ही क्या है ? चवन्नी की भी नहीं । बाकी सब लोग तो तुर्रम खां हैं । इसलिए वे हमारी बात क्यों मानने लगे ? आज के जमाने में तो आदमी बस दो की ही बात मानता है । बॉस और बीबी की । और औरतें भी केवल दो आदमियों की ही बात मानती हैं । एक मेक अप मैन की और दूसरी कैमरामेन की । बाकी तो वे किसी के बाप की भी नहीं सुनती हैं । लेकिन करें तो क्या करें, कुछ समझ नहीं आता है । 

इतने में शीला मैम भी कहने लगी "सही कह रही हो दीदी । परसों "महामूर्ख चुनाव कार्यक्रम" था । किसी ने वोटिंग नहीं की । यह तो लोकतंत्र का सरासर अपमान है । हमारी इसी कमी का तो फायदा नेता उठा रहे हैं । समझदार, शिक्षित, संपन्न लोग लंबी लंबी लाइन से बचने के चक्कर में वोट देने ही नहीं जाते हैं । इस प्रकार अनपढ लोग, कम समझदार लोग वोट देकर आ जाते हैं और गुंडे, मवाली, अपराधी, भ्रष्टाचारी लोग विधायक / सांसद बन जाते हैं । पहली बात तो ये है कि ईमानदार लोग राजनीति में आते ही कहां हैं ? जो भी आते हैं वे केवल अपना "घर भरने" ही आते हैं । जो लोग वोट नहीं देते , वे लोग घर में बैठकर सरकारों को कोसते हैं । अब ये बात कौन समझाये ? 
इसी तरह कल भी कुछ टॉस्क दिया था । होली का गीत लिखने के लिए कहा था । लिखा किसी ने ? हां, एक टास्क और दिया था । "हरि" सर को टाइटल देने का भी कहा था मगर इक्का दुक्का लोगों ने ही यह काम किया । बताओ यह भी कोई बात हुई "? बात तो लाख टके की थी , मगर बात तो बात है । बातों से ना तो पेट भरता है और ना ही मन । इसलिए बातों की भी क्या बात की जाये । जितनी ज्यादा बात करेंगे उतनी ज्यादा बात की बात बिगड़ेगी । इसलिए इस बात को सभी सखा और.सखियों पर ही छोड़ देते हैं । 

तो प्रतिलिपि हवेली में सब लेखक और लेखिकाएं अल्पाहार करके एक हॉल में आ गये थे और अपनी अपनी टोली में बैठ गए । सांस्कृतिक दल की मुखिया सुषमा मैम ने कहा "कल आप कोई गीत नहीं लिख पाये तो कोई बात नहीं , आज यहां पर सुना दीजिए" । और फिर शुरू हुआ गीतों का दौर 

हेमलता मैम 
मल दे गुलाल मोहे आई होली आई रे 
शीला शर्मा मैम 
होली आई रे कन्हाई रंग छलके सुना दे जरा बांसुरी 
पुष्प लता मैम 
अरे नंदलाला होरी खेलत बिरज में धूम मची है 
अलका माथुर मैम 
ओ पिया संग खेलो होरी फागुन आयो रे 
सरस्वती सखी मैम 
आयो फागुन हठीलो रंग चोली पे पीलो हमें डारन दे 
सुनंदा असवाल मैम 
होली के दिन दिल खिल जाते हैं रंगों में रंग मिल जाते हैं 
सुषमा तोमर मैम 
सात रंग में झूम रही है दिलवालों की टोली रे भीगे दामन चोली रे 
नीलम गुप्ता मैम 
जोगी जी धीरे धीरे नदी के तीरे तीरे 
शिल्पा मोदी मैम 
ओ होली आई होली आई देखो होली आई रे 
अपनेश मंजीत मैम 
ओ मेरी पहले ही तंग थी चोली ऊपर से आ गयी बैरन होली 
अनन्या जी 
मोहे रंग दो लाल , लाल, नंद के लाल , मोहे रंग दो लाल 
ज्योति मैम 
अंग से अंग लगाना सजन हमें ऐसे रंग लगाना 
शिखा मैम 
अरे जा रे हट नटखट ना छू रे मेरा घूंघट 
शबाना परवीन मैम 
Do me a favour let's play Holi 
जया नागर मैम 
नीला पीला हरा गुलाबी कच्चा पक्का रंग, रंग डाला हाय मेरा अंग अंग 
प्रिया कंबोज मैम 
झणकारो झणकारो झणकारो बड़ा प्यारा लगै हो थारो झणकारो 
रितु गोयल मैम 
होलिया में उड़ै रे गुलाल कहियो रै मंगेतर से 
विनय शास्त्री सर 
जख्मी दिलों का बदला चुकाने आये हैं परवाने 
सूर्यनारायण पेरी सर 
होरी खेलै रघुवीरा अवध में होरी खेलै रघुवीरा 
अमित मोहन 
भागी रे भागी रे भागी ब्रजबाला ब्रजबाला कान्हा ने पकड़ा रंग डाला 
श्री 
आज ना छोड़ेंगे बस हमजोली खेलेंगे हम होली 

हमने तो कल सुना दिया था न । इसलिए हमें मुक्ति मिल गई । 😀😀😀

शानदार रंगारंग कार्यक्रम होने के बाद एक बार विभिन्न प्रकार के ज्यूस सर्व किये गये । बादाम पिश्ता की ठंडाई मगर बिना भंग वाली थी । प्रिया जी और रितु मैम इस पर बिफर गईं । बोलीं "हम कोई बच्चे हैं क्या जो हमें बिना भंग वाली ठंडाई सर्व कर रहे हैं । ये लो मेरे बच्चों के आधार कार्ड । हम अपने तो दे ही नहीं रहे हैं । इन बच्चों के आधार कार्ड से पता चल जायेगा कि हम बच्चे हैं कि बड़े" । हांफनी चढ गयी थी रितु मैम को । बड़ी मुश्किल से शांत किया मगर हो नहीं रही थीं । 
हमने कहा "कोई नहीं । चिंता की बात नहीं है । जब चाय पीने वाले को टाइम पर चाय नहीं मिलती है तो वह ऐसे ही तड़पता है । ऐसा करो । अब भंग वाली ठंडाई से काम नहीं चलेगा । अब तो "नीट" पिलानी पड़ेगी" । 

रितु मैम ने यह सुनते ही एक "काणी" आंख से मुझे देखा और आंखों से ही इशारा कर दिया कि बस, यही इलाज है । हमने शिखा जी को भेजा और "नीट" भंग मंगवाई । उसे एक पाइप के माध्यम से रितु मैम के हलक से नीचे उतार दिया । जैसे ही भंग पेट में पहुंची , तरंगें उठने लगी । रंग जमने लगा और रितु जी एकदम चंग हो गई । 

हमारी सोहबत का असर श्री पर भी होने लगा । आज तो श्री की सालियों की बहार ही बहार थी । लग रहा था कि जैसे वे कैट वॉक कर रही हों । श्री अब श्री 420 बन चुके थे । पता नहीं कब जमाल घोटा की पुड़िया ज्योति मैम और शबाना मैम के ठंडाई के गिलास में डाल दी । श्री के चेहरे पर कोई भाव नहीं था । 

थोड़ी देर में जमालघोटा ने असर दिखाना शुरू कर दिया । दोनों के पेट में बादल उमड़ने घुमड़ने लगे । आवाजें सबको सुनाई दे रही थी । बिजली भी चमकने लगी थी । ज्योति और शबाना मैम पेट पकड़ कर वहीं पर लेट गईं । वो तो भला हो अपनेश जी, रितु जी, प्रिया जी और अनन्या जी का जो चारों उन्हें उनके "गंतव्य स्थल" की ओर ले गईं । वरना , बारिश का क्या है ? कहीं भी हो सकती थी । 

जब वे वापस आईं तो अनन्या जी बता रही थीं कि बहुत  मूसलाधार बारिश हुई थी और साथ में "ओलावृष्टि" भी हुई थी । 

हेमलता मैम ने इस बार श्री को नहीं बख्शा । वहीँ पर मुर्गा बना दिया । वो तो शुक्र था कि उनके हाथ में बंदूक नहीं थी वरना "मदर इंडिया" वाला सीन यहां भी हो जाता । अनन्या जी ने आई से विनती की तब जाकर श्री को मुर्गे से इंसान बनाया गया । 

अब माहौल को थोड़ा शांत करने की गरज से हमने कार्यक्रम को आगे बढ़ाने का काम किया । 

हमने एक प्रस्ताव रखा । हमारे चार ग्रुप हैं । पहला मस्तानी । ये ग्रुप ब्रज की होली के रसिया गाएंगे । दूसरा ग्रुप है दीवानी । ये होली पर स्वनिर्मित कोई गीत गायेंगे । तीसरा ग्रुप है तूफानी । ये कोई पैरोडी सुनाएंगे । चौथा ग्रुप परवानों का है तो वे कोई कविता सुनाएंगे । 

मेरे इतना कहते ही तीनों ग्रुपों के चेहरे प्रसन्न हो गए मगर "तूफानी" ग्रुप परेशान नजर आया। परेशानी जायज थी । अभी थोड़ी देर पहले जो भयंकर तूफान उठा था , वह अभी पूरी तरह थमा नहीं था । बीच बीच में गड़गड़ाहट सुनाई दे जाती और हवा का कोई तेज "झोंका" आ जाता था । इससे उस तूफान का अहसास हो रहा था । अभी एक आफत से पीछा छूटा नहीं कि हमने उन्हें पैरोडी सुनाने का हुकम दे दिया । अनन्या जी हमें गुरु मानती हैं इसलिए जब कभी संकट में घिर जाती हैं तो हमसे मदद की उम्मीद भी रखती हैं । गुरु होने पर जिम्मेदारी भी "गुरु" हो जाती है । 

हमारे पास एक पैरोडी रेडीमेड थी । हमने व्हाट्सएप पर उसे भेज दिया और अनन्या जी को इशारे से समझा दिया । वे अब आश्वस्त हो गई । 

कार्यक्रम चालू हो गया । 
पुष्प लता मैम की लीडरशिप में सब "मस्तानी" गाने लगीं । 

आज बिरज में होरी रे रसिया 2 
होरी रे रसिया बरजोरी रे रसिया 
आज बिरज में होरी रे रसिया । 

घर घर ते ब्रज वनिता निकरीं 
कोई कारी कोई गोरी रे रसिया 
आज बिरज में होरी रे रसिया 

कौन गांव के कुंवर कन्हाई 
कौन गांव राधा गोरी रे रसिया 
आज बिरज में होरी रे रसिया 

नंद गांव के कुंवर कन्हाई 
बरसाने की राधा गोरी रे रसिया 
आज बिरज में .. 

कान्हा के हाथ कनक पिचकारी 
राधा के हाथ कमोरी रे रसिया 
आज बिरज में 

उड़त गुलाल लाल भए बदरा 
मारत भर भर झोरी रे रसिया 
आज बिरज में .. 

चंद्र सखी भज बालकृष्ण छवि 
चिर जीवी यही जोड़ी रे रसिया 
आज ब्रज में होरी रे रसिया 

वातावरण तालियों से गूंज उठा । समां बंध गया । हेमलता मैम तो दीवानी की तरह नाचने कुदने लगीं । गीत खत्म होने के बाद भी वे रुकी नहीं, करती रहीं । आखिर अनन्या जी ने ही समझाया उन्हें । तब जाकर रुकी वे । 

इधर दीवानी टीम सुषमा तोमर और नीलम गुप्ता जी की लीडरशिप में एक होली का लोकगीत सुनाने लगीं 

गीत की तर्ज है : काली दह पे खेलन आयो री मेरो छोटो सो कन्हैया । 

अगर किसी ने नहीं सुना हो तो पहले यू ट्यूब पर सुन सकते हैं । गीत इस प्रकार है । 


नैनन सों रंग बरसाय गई , इक छोरी बरसाने की अरे नैनन सों रंग बरसाय गई , इक छोरी बरसाने की 
या छोरी बरसाने की , अ र र र गोरी वृंदावन की 
सैनन (इशारे से) सों मोय बुलाय गई , या छोरी बरसाने की 
अरे नैनन सों रंग बरसाय गई , या छोरी बरसाने की । 

कोरी कोरी पहनी चुनरिया 2 
लचक रही याकी पतली कमरिया 
नैक (जरा) हौलै से मुसकाय गई, या छोरी बरसाने की ।
अरे नैनन सों रंग बरसाय गई , या गोरी बरसाने की ।। 

मन ही मन में फूली डोलै 2 
मीठी मीठी बोली बोलै 
कान्हा की नींद उड़ाय गई , इक छोरी बरसाने की 
अरे, नैनन सों रंग बरसाय गई , इक छोरी बरसाने की ।। 

सब सखियां हिलमिल कर आईं 2 
कान्हा की हुई खूब खिंचाई 
कान्हा ते मेल मिलाय गई , इक छोरी बरसाने की 
अरे, नैनन सों रंग बरसाय गई , इक छोरी बरसाने की 
इक छोरी बरसाने की , इक गोरी वृंंदावन की 
अरे, नैनन सों रंग बरसाय गई, इक छोरी बरसाने की ।। 

ये गीत हमने तैयार कर सुषमा मैम को दे दिया था । 😀😀


अब तूफानी टीम को एक परोड़ी सुनानी थी । अनन्या जी ने छुटकी यानी शिखा जी को पैरोडी सुनाने के लिए कहा । शिखा जी ने शुरु किया 

तर्ज : चंदन सा बदन , चंचल चितवन 

इंजन सा बदन , खंबे से चरण 
वो भैंस सा तेरा डकराना 
मुझे दोष ना देना जग वालो 
हो जाऊं अगर मैं बेगाना 

ये भूत समान भवें तेरी पलकों के किनारे परनाले 
चपटी सी नाक गड्ढे में गाल और होंठ तेरे काले काले 
साया भी जो तेरा पड़ जाए बरबाद हो दिल का खजाना 
इंजन सा बदन खंबे से चरण 

तन ढाई मन सा भारी है और बुलडोजर की मूरत है 
हमको तो नहीं है पर शायद सड़कों को तेरी जरूरत है 
तुझे देखने से तो अच्छा है सिर फोड़ फोड़ कर मर जाना । 
इंजन सा बदन खंबे से चरण 
वो भैंस सख तेरा डकराना 
मुझे दोष ना देना हवेली वालो 
हो जाऊं अगर मैं बेगाना 
चंदन सा बदन । 

मजा आ गया । कितनी बढिया पैरोडी सुनाई थी शिखा जी ने । अद्भुत । 

अब परवानों की बारी थी । हमारी टीम का हर सदस्य कविता या गीत सुनाने की इच्छा रखता है । हमने उन्हें ढाढस बंधाया और कहा कि पहले हम सुनाते हैं फिर तुम लोग सुना देना । इस पर सब लोगों ने हमारी बात का समर्थन किया । 

हमने एक स्वरचित गीत सुना दिया 

मेरी तो बस तुझसे ही होली है 

जब फागुनी रंग बरसते हों 
गोरी के गाल चमकते हों 
नैनन सों पिचकारी छुटे 
मेरे जैसे लाखों लोग लुटे 

तेरी मीठी लागै बोली है 
मेरी तो बस तुझसे ही होली है । 

तेरी मुस्कान का कायल हूं 
हाय, आज तलक भी घायल हूं 
शीशे से बदन से जो छू जाऊं 
मर मर के फिर से जी जाऊं 

गोरी तू सतरंगी रंगोली है 
मेरी तो बस तुझसे ही होली है 

जी चाहे तुझको मैं रंग डारूं
तेरे नाल मैं भंगड़ा कर डारूं 
मेरे दिल से दिल तू मिला गोरी 
मुझे अपना मीत बना गोरी 

मस्ती में डूबी ये टोली है  
मेरी तो बस तुझसे ही होली है । 

फिर एक कविता श्री ने भी सुनाई 


आज हम ही नहीं ये दिल भी सराबोर है 

एक तो मौसम की खुमारी का नशा 
उस पर ये तेरी कातिल सी अदा ।
किस कदर बेचैन , ये दिल का चितचोर है 
आज हम ही नहीं , ये दिल भी सराबोर है ।।

रंगों से भीगा  ये , बदन तेरा पुरजोर है ।
आज हम ही नहीं, ये दिल भी सराबोर है ।।

तूने आंखों से कैसी पिचकारी चलाई 
सीधी दिल में लगी और सुध बुध गंवाई ।
उस पर सितम तू, मंद मंद मुस्कराई 
कत्ल करते समय तू जरा ना घबराई ।।

तेरे कत्लों के चर्चे मुहल्ले में जोर है ।
आज हम ही नहीं ये दिल भी सराबोर है ।।

तेरी गली से ये हवाऐं कैसी आईं 
तेरे बदन की खुशबू संग लाईं ।
जब तेरी झीनी चुनर लहराई 
फिर रंग , गुलाल की किसे याद आई ।।

तेरी मस्ती में डूबा हुआ पोर पोर है ।
आज हम ही नहीं ये दिल भी सराबोर है ।।

इसके बाद सूर्य नारायण "पेरी" जी जो आंध्र प्रदेश के हैं । तेलुगु भाषी हैं मगर हिन्दी बहुत अच्छी है इनकी । इन्होंने भी एक गीत सुनाने की इच्छा व्यक्त की । निम्न प्रकार सुनाया 

तब मजा कुछ और ही आता है 

कागज हो , कलम हो , दवात हो अहसास हों, खयाल हों, जजबात हों 
भावों को कागज पर लिखने की बात हो 
ऐसे में गर सखा सखियों का साथ हो 

तब मजा कुछ और ही आता है । 

मस्ती हो, फागुन हो, होरी हो 
सामने कोई हसीना गोरी गोरी हो 
रंग हो, गुलाल हो, पिचकारी हो 
गोरी के होठों पर एक मीठी सी गारी हो 

तब मजा कुछ और ही आता है । 

गीत हो , गजल हो, रुबाई हो 
"हरफनमौला" ने काव्य गोष्ठी सजाई हो 
बड़े बड़े नामधारी साहित्यकार हों 
उनके बीच मेरे जैसा अनाड़ी बरखुरदार हो 

तब मजा कुछ और ही आता है । 

विनय शास्त्री जी भी कुछ दोहे लिखकर लाये थे । उन्होंने सुनाना शुरू किया 

होली के दोहे 

नीला पीला कर गई , मल कै रंग गुलाल खुद कोरी ही रह गई इसका बहुत मलाल 

पिचकारी से छूटती , गोली जैसी जल धार 
भींज रहीं सब गोपियाँ, हंस रहे कृष्ण मुरार 

कारे पीरे मुंह पुते , पहचाने नहीं जात 
ऊपर ते नीचे तलक , भीज्यो सगरो गात 

गारी भी मीठी लगै , भाभी तेरी आज 
पिचकारी बड़ी तेज है , भाज सकै तो भाज 

जिनके पिय परदेस में उनकी काहे की होरी 
अंसुअन की बरसात में, भीज रही गोरी 

अब हमने एक बार सबसे पूछा कि और कोई कुछ सुनाना चाहता है क्या ? तो शबाना परवीन जी उठ खड़ी हुई । हमने उन्हें भी इजाजत दे दी । उन्होंने ये कविता सुनाई । 

खतरनाक इरादे लिए हुए,




आ गईं हु मै।
संग अपने बड़ी सी पेटी लाई हु।
उस पेटी में सब महिलाओं के लिए,
कोड़े भी लाई हु मै।
कमर कस लो साथियों बहनों और माताओं।
बहुत नृत्य करवाया महिलाओं से सर ने
चूहियो को छोड़कर।
अब इनको भी नृत्य करवाना है।
कम से कम 50 कोड़े तो सब को 
खिलाना है।
श्री जीजू को भी खूब लगाना है।
मैं संग अपने ढोलक भी लाई हु,
नृत्य के साथ ढोल भी तो बजाना है।
खेलेंगे होली तब तक,
जब तक न भीगे चोली है।
रंग बिरंगे उड़ते गुलाल,
नीले हरे काले पीले नारंगी सफेद और लाल।
ले पिचकारी सब पे डाल।
कोई न बचने पाए।
सब पे डालो,
जो भी सामने आए।
गुजिया पूरी हलवा भी खाना है।
बुरा न मानो होली है।

और इस प्रकार आज का होली का कार्यक्रम समाप्त हुआ । कल फूल होली होगी । 

हरिशंकर गोयल "हरि"
16.3.22 



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2 Comments

Abhinav ji

16-Mar-2022 07:59 AM

अरे वाह बहुत खूब

Reply

Hari Shanker Goyal "Hari"

16-Mar-2022 11:10 AM

धन्यवाद जी

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